यह एक संक्रमण तथा लंबे समय तक चलने वाला ज्वार है जो “साल्मोनिलाटाइफी(SalmonellaTyphy) नामक जीवाणु से हुआ करता है। इस ज्वर से पीड़ित रोगी को तेज ज्वार क्षुधानाश बेचैनी, सिरदर्द, पेटदर्द, शरीर गिरा-गिरा सा रहना, प्लीहा/तिल्ली की वृद्धि तथा छोटे-छोटे लाल दाने रोगी के पेट और पीठ पर दिखाई देना आदि “टायफाइड के लक्षण” होते हैं। इस बार के बिगड़ जाने पर दातों से रक्तस्राव और भेदन(परफरेसन/Perforation) हो जाता है ।
यह एक संक्रमण तथा लंबे समय तक चलने वाला ज्वार है जो “साल्मोनिलाटाइफी(SalmonellaTyphy) नामक जीवाणु से हुआ करता है। इस ज्वर से पीड़ित रोगी को तेज ज्वार क्षुधानाश बेचैनी, सिरदर्द, पेटदर्द, शरीर गिरा-गिरा सा रहना, प्लीहा/तिल्ली की वृद्धि तथा छोटे-छोटे लाल दाने रोगी के पेट और पीठ पर दिखाई देना आदि “टायफाइड के लक्षण” होते हैं। इस बार के बिगड़ जाने पर दातों से रक्तस्राव और भेदन(परफरेसन/Perforation) हो जाता है ।
टायफाइड के लक्षण इन हिंदी | typhoid ke lakshan in Hindi
-उतार-चढ़ाव के साथ ज्वार का रहना,
-भूख न लगना,
-किसी भी प्रकार के कार्य में मन ना लगना,
-शरीर में दुर्बलता
-हाथों की हथेलियां जलना
-पैरों के तलवे जलाना।
-जीवाणु पित्त की थैली में एकत्र होकर पित्त(बाइल) के द्वारा आंख में प्रवाहित होकर मल मूत्र के द्वारा शरीर से बाहर निकल जाते हैं तथा संक्रमण(infection) का कारण बनते हैं।
– रोगी को धीरे – धीरे ज्वार चढ़ता चला जाता है इसके बाद बुखार में स्थिरता आ जाती है, और ज्वार 99°F – 104°F तक चढ़ा जाता है कुछ रोगियों में ज्वार सर्दी के साथ भी चढ़ता है, अधिकांश रोगियों में ज्वार के साथ शरीर में टूटने, सिर दर्द, बेचैनी तथा पेट दर्द के लक्षण मिलते हैं। कभी-कभी सिरदर्द का लक्षण ही सर्वप्रथम प्रदर्शित करता है, रोग के आरंभ में खाने में अरुचि, कब्ज, पेट दर्द व अफरा (पेट फूलना) की शिकायत करता है, तथा सूखी खांसी, नकसीर, वमन, नींद ना आना, आलस्य, शरीर में शिथिलता, किसी भी कार्य में मन न लगना, ज्वार की अपेक्षा नारी का धीमी गति से चलना आदि कुछ प्रमुख कारण है।
3. टाइफाइड फीवर के पर्यायवाची नाम-
.मंथर ज्वर,
.आंत्र ज्वर,
.तन्द्रिक ज्वर,
.मोतीझारा,
.मियादी बुखार,
.इंटेरिक फीवर,
.टायफाइड फीवर।
4. टायफाइड के प्रमुख कारण | typhoid ke Pramukh Karan
गंदगी होने पर साफ-स्वच्छता के अभाव (लापरवाही) ही इस रोग के फैलने का प्रमुख कारण है, रोगी के मल-मूत्र में यह जीवाणु निष्कासित होते हैं, जो कम तापमान और नमी में अधिक संख्या में पनपते हैं इन्हें मक्खियों, मच्छरों के समान ही खाने-पीने की चीजों दूध आदि तक पहुंचा देते हैं, वहां से मनुष्य की आँत में पहुंचकर पनपते हैं तथा रोग फैलाते हैं।
मनुष्य शरीर में प्रवेश करने पर यह जीवाणु छोटी आँत के लसीकाभ उत्तक में एकत्रित होकर अपनी संख्या वृद्धि करते हैं।
5. टाइफाइड का देसी इलाज एवं घरेलू उपचार | typhoid ka desi ilaaj
आइए हम लोग जानते हैं कैसे घरेलू उपाय करके भी हम टाइफाइड से निजात पा सकते हैं।
5(1.).“टाइफाइड रोग” के होने पर खाने में क्या सावधानी बरतें ?
. क्योंकि यह आंतों का ज्वार है, ऐसा भोजन ले जो आंतों को आराम दे, ऐसा भोजन ना करें जिससे की आंतों को नुकसान पहुंचे।
-पीने के लिए पानी उबालकर ठंडा किया हुआ पानी पीना चाहिए।
5(2.). नमक और पानी से टाइफाइड में आराम।
. ठंडे पानी में नौसादर या नमक डालकर उसकी पट्टी रोगी के सर पर रख कर बार-बार बदलने से भी तेज ज्वर कम हो जाता है।
5(3.). गुनगुने पानी और शहद से टाइफाइड में आराम मिले।
.रोज सुबह शाम गुनगुने पानी में एक चम्मच शहद डालकर लेने से टाइफाइड बुखार में आराम मिलता है, इम्यूनिटी पावर भी बढ़ती है।
5(4.). टाइफाइड रोग को अनार से ठीक करें।
इसके पत्र क्वाथ में 500 मिलीग्राम सेंधा नमक मिलाकर सेवन करने से आंत्रिक सन्निपात टाइफाइड बुखार में आराम मिलता है।
5(5.).मुनक्का और शहद से टाइफाइड को जड़ से खत्म करने का इलाज।
अगर आपकी जीवा सूख जाए फ़ट जाए,तो इसके लिए आप 2-3 नग मुनक्का ले और एक चम्मच शहद के साथ पीसकर उसमें थोड़ा भी मिलाकर लेप करने से लाभ होता है।
5(6.).टायफाइड ज्वर में दालचीनी के फायदे।
संक्रमण ज्वर 5 ग्राम दालचीनी का चूर्ण लेकर उसमें एक चम्मच शहद मिलाकर, सुबह, दोपहर, शाम सेवन करने से लाभ होता है।
नोट– दालचीनी गर्भवती महिलाओं को नही चाहिए।
5(7.) टाइफायड ज्वर (बुखार) में गन्ने के रस के फायदे।
1 भाग गन्ने का लेकर उसमें 3 भाग जल मिलाकर हल्के हाथों से शरीर पर लगाने से लाभ मिलता है।
5(8.). टाइफायड ज्वर में छोटी इलायची के फायदे।
सभी प्रकार के ज्वर (बुखार) में 2 भाग इलायची के बीज तथा 1 भाग बेल वृक्ष के मूल (जड़) चूर्ण बना ले उस चूर्ण को 1 चम्मच दूध और पानी मे मिलाकर पकाए और केवल दूध शेष रह जाने पर उसे 20 मि० ली० कि मात्रा में सुबह, दोपहर, शाम करने से शीघ्र ही लाभ मिलता है।
5(9.). टाइफायड ज्वर में गोखरू से लाभ।
15 ग्राम गोखरू की छाल को 250 ग्राम जल में उबालकर, जब इसका चौथाई भाग शेष रह जाये, इसे छानकर इसकी चार खुराक बनाकर दिन में चार बार से ज्वर उतर जाता है।
5(10.). टाइफायड ज्वर में जीरे से ठीक करे।
5 ग्राम जीरा का चूर्ण लेकर उसमें 20 मिलीग्राम कचनार छाल के रस में मिलाकर दिन तीन बार लेने से ज्वर(बुखार) उतर जाता है।
5(11.). नीम से मियादी बुखार (टाइफायड)में लाभ।
5 ग्राम नीम की छाल, 500 मिलीग्राम लौंग का चूर्ण या 500 मिलीग्राम दालचीनी का चूर्ण मिलाकर 2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम जल के साथ लेने से साधारण ज्वर एवं रक्त विकार दूर होते हैं।
नोट– दालचीनी गर्भवती महिलाओं को नही चाहिए।
5(12.). श्वेत पुनर्नवा से ज्वर (टाइफाइड) में लाभ।
2 ग्राम की मात्रा में श्वेत पुनर्नवा मूल (जड़) दूध के साथ सुबह-शाम लेने से लाभ मिलता है।
5(13.). सहिंजन की जड़ो से बुखार ठीक करें।
20 ग्राम सहिंजन की ताजी जड़ों को 100 ग्राम पानी में उबालकर पिलाने से नियतकालिक (लंबे समय से) ज्वर छूट जाता है।
5(14.). शीशम का सार से मियादी बुखार में लाभ।
20 ग्राम शीशम का सार, 320 ग्राम पानी, 160 ग्राम दूध, इनको मिलाकर जीतनी दूध की मात्रा डाली थी जब उतना दूध रह जाए फिर उसको दिन में 3 बार पीने से सभी प्रकार के ज्वर में लाभ होता है और यह दूध सभी प्रकार के ताप ज्वर को मिट जाता है।
6. टाइफाइड जड़ से खत्म करना | typhoid jad se khatm karna
आयुर्वेदिक औषधि से टाइफाइड को जड़ से खत्म कर सकते हैं। नीचे दी गई कुछ आयुर्वेदिक औषधियां हैं।
7. टाइफाइड की आयुर्वेदिक दवा | typhoid ki ayurvedic dava
- ज्वरांतक कैप्सूल (निर्माता – ज्वाला)। खुराक की मात्रा 1-2 कैप्सूल दिन में दो बार दे।
- महासुदर्शन वटी (निर्माता – बैद्यनाथ)। इसको आप दो-दो गोली दिन में तीन बार लें।
- कोराजान (निर्माता – झंडू)। आप इसे दो कैप्सूल दिन में दो या तीन बार खा सकते हैं।
- कस्तूरी भैरव रस।
- पूर्ण चंद्रोदय रस।
- स्वर्ण भस्म मुक्ता।
- पिष्टी ब्राह्मी।
- वटी प्रवाल पिष्टी।
- मधुरंतक वटी।
- सौभाग्य वटी।
- शंख वटी।
- हिंग्वाष्टक चूर्ण।
- लवण भास्कर चूर्ण।
- सितोपलादि चूर्ण।
- चवनप्राश।
- लोहासव सिरप।
- द्राक्षासव सिरप।
8. टाइफाइड टेस्ट | typhoid test
बिडाल टेस्ट-
यह एक विशेष प्रकार की जांच होती है जो टाइफाइड रोग की पहचान के लिए की जाने वाली सर्वोत्तम उपयुक्त जांच है
इस जांच में 1ml ब्लड की जरूरत पडती है जिसे रोगी से प्राप्त किया जाता है बाद में उसको लैब में ले जाकर उस ब्लड से टेस्ट किया जाता है।
नोट- सही समय पर रोगी की जांच करा कर अच्छे डॉक्टर से चिकित्सा कराएं। घरेलू उपचार तो शुरुआती प्रमुख इलाज है जो घर पर किए जा सकते हैं
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